🪔 दीवाली क्यों मनाते हैं ।।
दीवाली भारत का सबसे पवित्र और प्रकाशमय त्यौहार है। यह त्यौहार भगवान श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है। कहा जाता है कि जब भगवान राम माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे, तब नगरवासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया। इसी कारण इसे "प्रकाश का पर्व" कहा जाता है। इस दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, दीप जलाते हैं, लक्ष्मी-गणेश की पूजा करते हैं और मिठाइयाँ बाँटते हैं। दीवाली अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि सत्य और धर्म का मार्ग कठिन जरूर होता है, पर अंत में वही विजयी होता है।
⚔️ क्या राम सच में "मर्यादा पुरुषोत्तम" थे ?
भगवान श्रीराम को “मर्यादा पुरुषोत्तम” कहा जाता है क्योंकि उन्होंने हर स्थिति में धर्म और मर्यादा का पालन किया। उन्होंने राजा, पुत्र, पति, भाई, और मित्र—हर भूमिका में अपने कर्तव्यों को सर्वोपरि रखा। जब पिता के वचन की रक्षा के लिए उन्होंने वनवास स्वीकार किया, तो उन्होंने यह सिद्ध किया कि सच्चा पुत्र वह है जो अपने माता-पिता की आज्ञा का सम्मान करे।
0 ने सीता जी को वन में साथ लिया, लक्ष्मण को स्नेहपूर्वक मार्गदर्शन दिया, और रावण जैसे शक्तिशाली असुर का सामना धर्म के बल पर किया। उनका जीवन त्याग, संयम, और आदर्शों से भरा हुआ था।
लेकिन कुछ विद्वान यह भी मानते हैं कि उन्होंने सीता माता को अग्नि परीक्षा देने और बाद में त्याग देने का निर्णय अन्यायपूर्ण था। इस दृष्टि से राम के "पुरुषोत्तम" स्वरूप पर प्रश्न उठते हैं। परंतु यदि हम काल, समाज और धर्म की सीमाओं में देखें, तो राम ने वही किया जो उस युग की राजधर्म की मर्यादा थी।
उनका लक्ष्य केवल व्यक्तिगत सुख नहीं, बल्कि समाज की नैतिक व्यवस्था थी। उन्होंने दिखाया कि राजा का कर्तव्य कठिन होता है—कभी-कभी निजी भावनाओं की बलि देनी पड़ती है।
इसलिए कहा जा सकता है कि श्रीराम “मर्यादा पुरुषोत्तम” थे, क्योंकि उन्होंने व्यक्तिगत इच्छाओं से ऊपर उठकर धर्म को सर्वोपरि रखा। उनकी मर्यादा ने उन्हें भगवान का स्वरूप बना दिया—जो आज भी सत्य, धर्म और आदर्श का प्रतीक हैं।
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