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Ranjish hi sahi dil hi dukhane ke liye aa।। रंजिश-ए सही दिल ही दुखाने के लिए आ।। ग़ज़ल ।।

 

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Ranjish hi sahi dil hi dukhane ke liye aa।। रंजिश-ए सही दिल ही दुखाने के लिए आ।। ग़ज़ल ।।


रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ 

आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ 


किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम 

तू मुझसे ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ 


अब तक दिल-ए-खुशफ़हम को है तुझ से उम्मीदें 

ये आखिरी शम्में भी बुझाने के लिए आ 


एक उम्र से हूँ लज्जत-ए-गिर्या से भी महरूम 

ऐ राहत-ए-जां मुझको रुलाने के लिए आ 


कुछ तो मेरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रख 

तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ 


माना के मोहब्बत का छुपाना है मोहब्बत 

चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ 


जैसे तुम्हें आते हैं न आने के बहाने 

ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ 


पहले से मरासिम ना सही फिर भी कभी तो 

रस्म-ओ-रहे दुनिया ही निभाने के लिए आ

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