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ग़ज़ल Gazal शायरी आग़ोश में किसी की सोया वो चैन से...सीमा रिफ़अत।

ग़ज़ल Gazal शायरी आग़ोश में किसी की सोया वो चैन से...सीमा रिफ़अत।



ग़ज़ल और शेरो-शायरी से मोहब्बत करने वालो के लियें पेश हैं सीमा रिफ़अत की चंद गज़ले उम्मीद है आपको पसंद आएगी।

ग़ज़ल

आग़ोश में किसी की....

यारो ने बहुत खूब यारी निभायी है
हर एक एक चीज़ तिज़ारत बनायी है ।।

फूलों की तरह जिसको सम्भाला था उम्र भर
खारों से उसने मेरी राहे सजाई है ।।

आग़ोश में किसी की सोया वो चैन से
शोलों की ज़द में मैने राते बितायी हैं।।

दे गया शिकस्त मुझको वो शान से
मैने ही जिसको शातिर चाले सिखायी हैं।।

हो कर मेरा,वो मेरा ना हो सका
अल्लाह मैने कैसी क़िस्मत लिखायी हैं।।

तेरी तुरबत में नहीं सितारे रिफ़अत
फिर क्यों बेज़ा उम्मीदें लगायी हैं।।
                                  सीमा रिफ़अत

Gazal

Yaro ne bahut khub yari nibhai hai
Har ek ek chiz tizart banai hai.

Phoolo ki tarha jisko smbhala tha umr bhar
Kharo se usne mere rahe sazai hai.

Aagosh mai kisi ke soya vo chaen se
Sholo ki jad me maine raate bitai hai.

De gaya shikast mujhko vo chaen se
Maine hi jisko shatir chale sikhai hai.

Ho kar mera,vo mera na ho saka
Allaha maine kaise kismat likhai hai.

Tere turbat mai nahi sitare rifat
Fir kyo beza ummide lagai hai.
                                                   Seema rifat

Gazal

मुंसलिक उससे हूँ फिर भी या रब
इक ख़लिश दरम्यान रहती है ।।

कहते कहते जो रुक गया दानिस्ता
कुछ तो है बात जो दिल में दबी रहती है।।

कोई कह दो क़ि मर न जाएं कही
आजकल आँख उसकी भी नम राहती है।।

वास्ता मुझसे नही उसका वले
फिर क्यों टकरा के नज़र उसकी झुकी रहती है।।

वक़्त के साथ वो भी बदल जायेगा रिफ़अत
जिसकी आमद पे निगाह तेरी बिछी रहती है।।
                                               सीमा रिफ़अत

Gazal

Munslik us se hu fir bhi ya rab
Ek khalish darmyan rahti hai.

Kahte kahte jo ruk gaya danista
Kuch to hai bat jo dil mai dabi rahti hai.

Koi kah do ki mar na jaye kahi
Aajkal aankh uski bhi nam rahti hai.

Vasta uska nahi mujhse vale
Fir kyo takra ke nazar uski jhuki rahti hai.

Wqt ke sath vo bhi badal jayega rifat
Jiski aamad pe nigah tere bichhi rahti hai.
                                                         Seema rifat.

ग़ज़ल

इक बार सही जिंदगी सवर जाये
आईना चाहें बदले,सूरत निखर जाये।।

सोच की हदें, दम तोड़ने लगी
ऐ काश वो कही से मिल जाये।।

वस्ल-ए-गामे-अवल्ली ले चली सरहद के पार्
ख़ुदा करें दिल उसका बदल जाये।।

एज़ाज नहीं हैं ये आंसू हैं
बाद उनके जो आँखों में भर जाये।।

बज़्म सजने लगी है रिफ़अत
ज़िक्र तेरा भी शायद छिड़ जाये।।
                            सीमा रिफ़अत

ग़ज़ल

वक़्ते-रुखसत पे कई बार हमें
उनका दीदार-ए-करम याद आया।।

शाख से टूट के गिरा गुंचा कोई
अपनी हसरत का चमन याद आया।।

बनती खिज़ा दुश्मन क्यूँ कर
फिर बहारो का सितम याद आया।।

हर साअते बदलते है वो रंग कई
उस दीवाने का सबक याद आया।।

बुत परस्ती की सजा मिलती है
सुन कर अपना भी गुनाह याद आया।।

अपनी फ़ितरत से नहीं मिलती रिफ़अत
फिर वहीं टूटा मकां याद आया।।
                                सीमा रिफ़अत
वो शोखियाँ, वो इनायत और शब्-ए-वस्ल....सीमा रिफ़अत
Tage - gazal,shayri

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