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Happy dushhara रावण राम और मैं।

 


Happy dushhara रावण राम और मैं।

दशहरा पूरे भारत मे विशेष रूप से उत्तर भारत में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। ये एक बार अक्टूबर में आता है एक बार नवंबर माह में आता है। यानी हर एक साल के बाद इसकी तिथि में परिवर्तन होता रहता है।

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दशहरे से पहले नवरात्र के व्रत आते हैं। इसमें देवी माँ दुर्गा की पूजा की जाती है। 9 दिन देवी के होते हैं जिसमें व्रत और पूजा की जाती है।
7 व्रत करने के बाद अष्टमी पूजन होता है दूसरे दिन नवमीं पूजन होता है जिसमे छोटी छोटी कन्याओ को घर बुला कर हलवा पूरी का प्रशाद दिया जाता है ।आजकल लोग कन्याओ को अपनी सामर्थ्य अनुसार गिफ्ट भी देते हैं।कन्याओं को एक तरह से देवी का स्वरूप ही माना जाता है।नवमीं के दूसरे दिन दशहरे के पावन पर्व मनाया जाता है।
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दशहरा से जुड़ी पोराणिक कथा।


दशहरे के पर्व के साथ एक बहुत ही रोचक कथा जुड़ी हुई है जो इस प्रकार है। राजा दशरथ की तीन रानियां थी। कौशल्या, सुमित्रा,केकई राजा अपनी तीनो रानियों को समान रूप से प्रेम करते थे।उनके राज्य में समृद्धि और सकून था।

समय अपनी गति से चलता है। राजा दशरथ की तीनों रानियों ने चार पुत्रो को जन्म दिया। बड़ी रानी कौशल्या ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया जिनका नाम राम रखा गया। राजा दशरथ की दूसरी रानी थी केकई जिन्होंने भरत को जन्म दिया।तीसरी रानी थी सुमित्रा जिन्होंने लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। चार तेजस्वी पुत्र पा कर राजा गर्व से फूले ना समाये। समय यूँही अपनी गति से आगे बढ़ता रहा।

राजा के चारो पुत्र प्रेम के साथ यूँही पलते हुये बड़े होने लगे। समय के साथ चारो पुत्रो ने गुरुकुल में शिक्षा दीक्षा प्राप्त करी। वही राजा जनक के घर भी एक तेजस्वी पुत्री थी सीता। सीता के बड़े होने पर राजा जनक ने सीता के लिये योग्य वर ढूढने के लिये स्वमवर का आयोजन किया। स्वमवर की शर्त थी कि जो भी वीर पुरुष शिव जी के धनुष को तोड़ देगा वही सीता का वर होगा।
Happy dushhara

गुरु की आज्ञानुसार राम भी अपने तीनो भइयो समेत स्वमवर में हिस्सा लेने पहुँचे और उन्होंने शिव जी के धनुष को तोड़ दिया।इस  प्रकार सीता का राम के साथ विवाह हो गया।साथ ही तीनो भइयो के लिये भी वही योग्य कन्याओं के साथ विवाह हो गया और चारो भी अपनी अपनी पत्नियों के साथ राज्य में वापिस लौट आये।राज्य में खूब खुशियां मनाई गई।

राजा दशरथ अब राज्य का कार्य भार अपने बड़े बेटे राम को सौपना चाहते थे। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।रानी केकई की दासी मंथरा ने रानी को खूब भड़काया कि तुम राजा से अपने बेटे भरत को राजा बनाने को कहो।रानी यू तो राम को बहुत प्रेम करती थी किन्तु पुत्र मोह में पड़ कर वो अनर्थ कर बैठी।

एक बार रानी ने राजा के प्राणों की रक्षा की थी तब राजा ने रानी से कोई दो वर मांगने को कहा था तब रानी ने कहा था जब उचित समय आएगा तो में वर मांग लूंगी औऱ रानी केकई को यही समय उचित लगा। उन्होंने अपने दोनों वरो को राजा से मांग लिया।पहले वर में राम को 14 वर्ष का बनवास और दूसरे वर में भरत को राज गद्दी।

राजा ने रानी को बहुत समझाया लेकिन " विनाशकाले विपरीत बुद्धि "
 रानी नही मानी और कोप भवन में जा बैठी हार कर राजा को दिए हुए वर मानने पड़े। राम अपनी पत्नी सीता के साथ बनवास को चले गए साथ मे लक्ष्मण भी गए।अपने पुत्रों के वियोग में राजा दशरथ बीमार हो गए और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।

उधर भरत ने राम की खरॉओ को राज गद्दी पर रख कर सिर्फ प्रतिनिधि बन कर राज किया। कि जब राम वन से लौटेंगे तो वही राजा होंगे। वैन का जीवन बहुत कठिन था। राम लक्ष्मण और सीता के साथ मिल कर एक कुटिया बना कर उसमें रहने लगे।

एक दिन लंका के राजा रावण की बहन सूपनखा वन में घूमने निकली और उसकी नज़र लक्ष्मण पर पड़ी वो मोहित हो गई और उसने लक्ष्मण के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा।लेकिन लक्ष्मण ने मना कर दिया बहुत मनाने पर भी जब लक्ष्मण नही माने तो सूपनखा अपने असली रूप में आकर उन पर प्रहार करने लगी। इसी झगड़े में सूपनखा की नाक कट गई।
Happy dushhara

वो रोती हुई अपने भाई रावण के पास गई।रावण अपनी बहन की ऐसी हालत देख कर तिल मिला उठा।और एक भिक्षु का भेष बना कर जा पहुँचा राम की कुटिया के पास जहाँ राम और लक्ष्मण कुटिया के बाहर थे और सीता कुटिया के अंदर। राम लक्ष्मण के होते रावण कुछ नही कर सकता था। इसलिये उसने एक राक्षस को कहा कि वो सोने का हिरण बन कर कुटिया के पास जाए।

सीता की नज़र सोने के हिरण पर गई तो उन्होंने राम से हिरण को पकड़ लाने को कहा। राम हिरण के पीछे वन को चले गए। हिरण राम को वन में बहुत दूर ले गया।राम ने तीर चलाया तो हिरण जोर से बोला लक्ष्मण बचाओ।सीता ने जब अपने स्वामी की आवाज सुनी तो उन्हीने लक्ष्मण को राम की मदत के लिये वन में भेजा।जाते वक्त लक्ष्मण कुटिया के चारो तरफ एक रेखा खींच गए और बोले आप इस रेखा को मत लगना ये आपकी रक्षा करेगी।

लक्ष्मण के जाते ही रावण ने जैसे ही रेखा पार करनी चाही तभी उसमे आग लग गई कई बार प्रयास करने के बाद भी जब रावण अंदर न जा सका यो उसने जोर से आवाज लगाई। "कोई भिक्षा देगा इस ब्राह्मण को " सीता बाहर आई और रेखा के अंदर से ही भिक्षा देने लगी।फिर क्या था रावण ने इसे अपना अपमान बताया और सीता को रेखा से बाहर आने पर मजबूर कर दिया।

जैसे ही सीता रेखा से बाहर आई रावण ने उनका हरण कर लिया और लका में ले गया। वहाँ उसने सीता को बड़े सम्मान के साथ अशोक वाटिका में रखा। यही से शुरू हुआ राम और रावण के बीच युद्ध का अध्याय।

राम जी ने हनुमान जी और उनकी वानर सेना के साथ मिल कर रावण के साथ युद्ध किया ।विभीषण की मदत से रावण की मृत्यु का भेद पाया और उसे मार कर सीता को मुक्त किया।

इसे ही बुराई पर अच्छाई के रूप में विजयदशमी या दशहरे के रूप में मनाया जाता है। तो ये थी दशहरा पर्व की पौराणिक कथा की दशहरा क्यो मनाया जाता है।

राम लीला का मंचन।

आज के बच्चों को शायद ही रामलीला के विषय मे कुछ पता हो।समय बदल गया है लेकिन फिर भी कही न कही आज भी इस कथा को रामलीला के रूप में मंचित किया जाता है। लकड़ी के धनुष बाण ने बेशक से प्लास्टिक का रूप ले लिया हो लेकिन राम कथा ओर दशहरे में अब भी कही खालिस सोंधापन है।

मुझे याद है बचपन के वो दिन जब हमारे घर के पास वाले स्कूल के ग्राउंड में रामलीला का मंच लगता था और हम सब रात के खाने के बाद जो कि हम जल्दी खा लिया करते थे।पड़ोसियों को इकठ्ठा कर के रामलीला देखने जाया करते थे। मौसम हल्का सा ठंडा होता था।ऐसे में मुंगफली की ठेली से  गर्म गर्म मुंगफ़ली ले कर खाना।कैसे खो जाती थी मै उन रामलीला के किरदारों में जैसे उनमे से एक मै भी हूँ।
Happy dushhara

रावण राम और मैं।

मैं बचपन से ही राम और रावण के बीच मे उलझी रही हूँ। माँ जब दशहरा दिखाने ले जाती थी तो रावण के विशालकाय पुतले के आगे हाथ जरूर जुरवाती थी। खुद भी हाथ जोड़ कर जाने क्या क्या प्रथनाये करती थी। वो कहती थी रावण से ज्यादा विद्वान व्यक्ति कोई दूसरा नही था।उन्होंने सीता का हरण जरूर किया था लेकिन उसे हाथ भी नही लगाया था। और भी बहुत सारी अच्छी बातें थी माँ के पास रावण के लिए।इसलिए मुझे रावण के जलने के हमेशा दुख होता था। और रावण के अगल बगल खड़े हुए उनके भाई भी मुझे हमेशा से बेचारे लगते थे। बालमन भी जाने क्या क्या सोचता है।

समय बदला रामलीला का मंच, दशहरे वाले मेले का ग्राउंड,मुंगफली का स्वाद सब बदल गया। नही बदला तो राम और रावण के लिये मेरे विचार।उत्तर रामायण में दशहरे के आगे की कहानी थी। राम ने सीता को रावण से छुड़ाने के लिये इतना बड़ा युद्ध किया। फिर सीता को छोड़ क्यो दिया ? क्यो नही लड़ पाये वो समाज की छोटी मानसिकता के साथ ? सीता ने कितना कुछ झेला और मर्यादा पुरुषोत्तम बन गए राम ..?आज भी दशहरे वाले दिन माँ के साथ छोटी सी हो कर विशाल रावण के समक्ष खुद को खड़ा हुआ पाती हूँ।

आगे फिर कभी चर्चा करेंगे तब तक happy dushhara.,😊

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