< >–>

Horror story.वो तम्बाई रंग वाली लड़की..

वो तम्बाई रंग वाली लड़की...

(Horror story)

उसका अधिकतर समय आजकल फ्लैट की पिछली बालकनी में ही बीतता है। क़भी उसके हाथों में किताब होती कभी अख़बार और कभी यूँ ही सोचों में गुम सामने बन रही बिल्डिंग को देखती रहती।पिछले चार महीने तक दूर तक फैला हुआ हरा मैदान था। और फिर अचानक से दीवार पर दीवार खड़ी होने लगी।काफी वक़्त लगने वाला था उस बिल्डिंग को बनने में,मल्टीस्टोरी जो थी।

लेकिन उसका ध्यान बिल्डिंग की तरफ नहीं था। वो देखती थी उस तम्बाई रंग वाली छोटी सी लड़की को जिसके भूरे ,घुँघराले बालों की लटे हमेशा उसके चेहरे पर झूलती रहती थी। वो कभी रेत के एक ढेर पर फिसलती कभी दूसरे पर और कभी ईंटो के ढेर के पीछे गुम हो जाती।

" मैडम में जाऊ,काम हो गया " उसने देखा काम वाली बाई सामने खड़ी थी। यानि 10:30 हो गए।
" ठीक है " उसने छोटा सा जवाब दिया। उसके पति 10 बजे ऑफिस चले जाते हैं।वो भी अपने ऑफिस के लिए साथ ही निकलती है। लेकिन दो महीने पहले एक ऐक्सीडेंट हुआ था।जिसमें वो किसी करिश्में की तरह बच गई । पूरे 20 दिन अस्पताल में गुजारने पड़े थे। अभी  दो दिन पहले ही दाहिने पैर और हाथ का प्लास्तर खुला है।पिछले दो महीने से वो छुट्टी पर है और एक महीना अभी और लगेगा उसे पूरी तरह ठीक होने में..

आज सुबह से ही मौसम गीला गीला सा है।थेरपिस्ट उसके हाथ पैरो की मसाज और एक्सरसाइज करा कर जा चुकी है।उसका TV देखने में कोई मन नहीं लगता। हमेशा से वो ऐसी ही है।दिमाग से उड़ी उड़ी सी..बस अपने जी की करती है। वो धीरे धीरे चल कर बालकनी में आ कर बैठ जाती है।बारिश फिर होने लगती है।

बारिश की वजह से सभी मजदूर इधर उधर खोहों में दुबके बैठे थे। बस एक वही तम्बाई रंग वाली ईंटो के ढेर पर घुटनों में सिर दिए बैठी भीग रही थी...और वो बालकनी में बैचेनी से पहलू बदल रही थी।काफी समय यूँ ही सरक गया वो थकने लगी थी और वाफ़िस रूम में आ कर बिस्तर पर लेट गई।तम्बाई रंग वाली अब भी उसके जहन में थी।

अब वो काफी हद तक ठीक होने लगी थी।एक छुट्टी की शाम आशीष यानि अपने पति के साथ बालकनी में चाय पी रही थी।उसकी नजरे उसे ही ढूंढ रही थी जो अभी कुछ देर पहले मसाला बनाते हुये मजदूरो के अगल बगल चक्कर काट रही थी।

" कुछ चुप सी रहने लगी हो...घर में सारा दिन रहने वालो में से तुम तो नहीं हो..ऑफिस कब से ज्वाइन करना है ?"  आशीष ने एक साथ कई सवाल उसकी तरफ उछाल दिए।
" बस कुछ दिन बाद..और सबसे पहले एक डॉक्यूमेंट्री इन मजदूरों के बच्चों के ऊपर बनाउंगी..इनकी देखभाल की कोई व्यवस्था होनी चाहिए।" वो खोई खोई सी बोली ।
" अच्छा... घर में रह कर काफी टची हो गई हो ..हाई प्रोफाइल से सीधा लौ प्रोफाइल.." आशीष हँस दिया। वो अब भी तम्बाई रंग वाली को ढूंढ रही थी।

कल महीने का पहला दिन था और उसे वापिस से ऑफिस ज्वाइन करना था। कल से वही भाग दौड़ वाली जिंदगी शुरू होने वाली थी। उससे पहले वो उस तम्बाई रंग वाली लड़की से एक बार मिलना चाहती थी। उसने वॉचमैन को फ़ोन कर के लड़की का हुलिया समझाया और बुला लाने को कहा।

घड़ी टिक टिक करती हुई आगे बड़ रही थी। वॉचमैन लड़की को ले कर अभी तक नहीं आया था। वो समय गुजारने के लिए अलमारी से कुछ पेपर ढूढ़ने लगी वैसे भी उसे कल के लिए कुछ तैयारी करनी थी।घड़ी फिर टिक टिक करती हुई आगे बड़ रही थी।

अलमारी के ऊपर एक पेपरों का पुलिंदा कोने में रखा हुआ था उसने जैसे ही उचक कर उसे निकालना चाहा सारे कागज बिखर कर कमरे में फैल गए। तभी बार डोर बैल बज उठी।उसने लपक क्र दरवाजा खोला।सामने तम्बाई रंग वाली खड़ी थी।अकेली ,वॉचमैन शायद दरवाजे तक छोड़ कर जा चुका था।

वो उसे अंदर ले आई। घुटनो के बल बैठ कर उसने,उसके भूरे घुँघराले बालो की लटो को पीछे कर के उसका चेहरा देखना चाहा..उसे लगा, उसका हाथ ठंडी सख्त बर्फ से टकरा गया हो। उसने तुरंत हाथ पीछे खींच लिया।घडी टिक टिक कर रही थी।

बाहर बदल गरज रहे थे।दिन जैसे रत में बदल रहा था। जोर की बारिश होने वाली थी।पिछली बालकनी की हवा जैसे कमरे में चलने लगी थी।बिखरे हुये कागज फड़फढ़ाने लगे थे।उसने ,उसे सोफे पर बैठने का इशारा किया ओअर कागज समेटने लगी।सामने अख़बार की कट्टिंग में एक फोटो थी दुर्घटनाग्रस्त कार में वो खुद थी..वो मशहूर TV जर्नलिस्ट शैलजा अग्निहोत्री ..दूसरी फोटो में गाड़ी एक झोपडी में घुसी हुई थी..तीसरी फोटो में खून से लथ पथ कुछ बच्चे थे..और चौथी फोटो में वो तम्बाई रंग वाली लड़की की लाश की फोटो थी..वो घबरा कर पलटी, तम्बाई रंग वाली पत्थर का सख्त चेहरा लिए सामने खड़ी उसे ही देख रही थी। और धीरे धीरे वो पत्थर के जिस्म वाली उसकी तरफ बढ़ने लगी।उसे अपना दम घुटता महसूस हुआ और आँखों के आगे अँधेरा छा गया।

घडी की टिक टिक उसके कानो में गूंज रही थी।भारी आँखों को उसने जबरदस्ती खोला।अमर में अँधेरा था।कुछ रौशनी के तार बाहर बालकनी से छन कर अंदर आ रहे थे।उसने अपने पत्थर होते जिस्म को पूरा जोर लगा कर समेटा और उठ क्र बाहर दरवाजे की तरफ भागना चाहा।लेकिन टकरा कर वही गिर गई। उसके मुँह से घुटी सी चीख निकली।सामने उसी का जिस्म पत्थर हुआ पड़ा था। वो तम्बाई रंग वाली सामने घुटनो पर ठोड़ी रखकर उसे ही देख रही थी।

टिक टिक ये घड़ी का वक़्त क्यों नहीं गुजरता।आशीष कब आएगा ? वो डरते हुए भी जुगत सोच रही थी। अपनी ली लाश होते जिस्म के आगे बैठ कर रोना..उसे लगा डर से उसे दोबारा अटैक आ जायेगा। तभी दरवाजा खुलने की आवाज आई।उसने और तम्बाई रंग वाली दोनों ने एक साथ उधर देखा। आशीष था। उसने चीखना चाहा मानो गले की गरारी अड़ गई।

आशीष ने उसे पुकारते हुये कमरे की लाइट ऑन करी।उसकी नज़र जैसे ही उस पर  पढ़ी वो शैलजा शैलजा करता हुआ उसे उठाने की कोशिश करने लगा। वो पास बैठी आशीष को छुना चाहती थी मगर हिल भी ना पाई। तम्बाई रंग वाली थोड़ा सरक कर बैठ गई थी।

 थोड़ी देर में उसका शारीर हॉस्पिटल ले जाया जा रहा था।कमरा  फिर खाली हो गया।लाइट जल रही थी।वो और तम्बाई रंग वाली दोनों कमरे में अकेले रह गए।बाहर बारिश जोरो पर थी। घड़ी टिक टिक कर रही थी।

वो रो कर थक चुकी थी। तम्बाई रंग वाली सोफे पर जा कर बैठ गई।उसकी आँखे बंद होने लगी। उसने खुद को शराब के नशे में धुत्त गाड़ी चलाते हुए देखा।गाड़ी अँधेरी ,सूनी सड़क पर दौड़ रही है फिर अचानक बिस्फोट होता है और उसके कानो को एक साथ कई चीखें सुनाई देती हैं।उसकी आँखे खुल जाती है।तम्बाई रंग वाली बिल्कुल उसके सामने बैठी हुई है। उसकी भूरी घुँघराले बालो की लटे फिर से उसके चेहरे को ढक लेती हैं।

धीरे धीरे उजाला कमरे में भरने लगता है। घड़ी अपना काम कर रही है।  दोपहर के 2 बज रहे हैं। दरवाजा खुलता है आशीष थका हुआ अंदर आता है। वो फिर उसे पुकारना चाहती है। लेकिन जैसे वो साउंड प्रूफ घेरे में कैद है।

आशीष नहा कर सो जाता हैं।शाम के पाँच बजने वाले हैं फोन की बैल से आशीष उठ बैठता हैं। गाड़ी की चाबी उठा क्र उदास,थका हुआ सा कमरे से  बाहर चला जाता हैं। वो उसके पीछे भागना चाहती है लेकिन गिर पड़ती है। वो जोर जोर से फिर रोने लगती है।

अँधेरा फिर होने लगा था लेकिन कमरे की लाइट जल रही थी।आशीष ने कमरे में बिखरे हुये कागज टेबल के नीचे रख दिए थे।एक कागज सोफे के पास पड़ा रह गया था। उसने कागज को पड़ना चाहा । वो सरकने लगी ।तम्बाई रंग वाली लड़की ने उसे कागज उठा कर पकड़ा दिया।

न्यूज़ की हैडिंग थी रॉन्ग साइड चलते हुए हादसा।चैनल ने शैलजा अग्निहोत्री को साफ बचा लिया था। रोते रोते कब उसकी आँखें बंद हो गई उसे पता ही नहीं चला।

वो एक सुरंग में भागती जा रही है। धीरे धीरे उसे रौशनी दिखाई देती है।वो भागती जा रही हैं।चमकदार रौशनी का एक गोला उसके चेहरे से टकराता है। झटके से उसकी आँखें खुल जाती हैं।वो अस्पताल के बिस्तर पर है।आशीष उसके पास बैठा है। वो उसे सब कुछ बताना चाहती है लेकिन गले से अजीब सी गिड़गिड़ाने वाली डरावनी आवाज निकलती है।वो रोये जा रही है डॉक्टर, नर्स और मीडिया उसे घेरे हुए खड़ा है।उसकी आँखों के आगे फिर अँधेरा छा जाता है।

घड़ी की सुई सुबह के आठ बजा रही है। उसे अपना बदन स्प्रिंग जैसा महसूस होता है। वो उठ सकती है।चल सकती हैं।वो चलती हुई पीछे की बालकनी में जा कर खड़ी हो जाती हैं।TV में न्यूज़ की मेन हेडलाइन रिपीड हो रही है।

" मशहूर TV जर्नलिस्ट शैलजा अग्निहोत्री अजीब सी लाइलाज बीमारी की शिकार "

बारिश फिर होने लगती है।तम्बाई रंग वाली लड़की का रेत के टीलो पर चढ़ना उतरना जारी है।

                                          समाप्त ।

Post a Comment

0 Comments

-–>